S.nrabbani

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लेखनी प्रतियोगिता -22-Jan-2022

एक ताज़ा ग़ज़ल पेश है

उनके लिए  देखो आज कितनी अजीब बात हो गयी 
मिलने गए किसी ग़ैर से और हमसे मुलाक़ात हो गयी

क्यों झुका रहे हो सर को किसी ग़ैर के दरबार में तुम
पूरा क्या न कर सकेगा ख़ुदा ऐसी क्या हाजात हो गयी

छोड़ा है जब से हमने तौरे मुस्तुफा और दर अल्लाह का
मुलव्विस हम पर दुनिया की छोटी बड़ी आफात हो गयी

उनके दीदार के लिए मुंतज़िर रहते हैं न जाने कब से हम
इस जुस्तुजू में कितने रात से दिन, दिन से रात हो गयी

मेरी भी तक़दीर सँवरने लगी है सरकार की हाजिरी से 
लगता है मेरे सरकार की मुझ पर भी खैरात हो गयी

टूटा है एक दिल ही तो क्यों उदास हो गए तुम इतना 
बच तो ज़िंदा गए तुम तुम्हारी  क्या वफात हो गयी

वो गुना गुना रहे थे कुछ ऐसा के सुनकर कान हमारे भी 
बा असर हो गए और रूह भी शौक ऐ नगमात हो गयी

क्या क्या लिखा करूँ मैं नौशाद दिले नाशाद के लिए 
तहरीर हमारी भी अब हर किसी की मोहतात हो गयी


    डॉ नौशाद रब्बानी

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

26-Jan-2022 12:51 AM

बहुत ही खूबसूरत

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Niraj Pandey

23-Jan-2022 07:24 PM

लाजवाब👌

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Punam verma

23-Jan-2022 09:36 AM

Very nice

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